राहुल पाठक
गोरखपुर में अगर किसी ने योगी को ललकारा है तो वह था हाता वाले। जी हां हाता वाले बाहुबली “हरिशंकर तिवारी” जिनकी गोरखपुर से लेकर लखनऊ तक न सिर्फ सिक्का चलता था बल्कि उनका काफिला जब निकलता था तो अच्छे-अच्छे थर्रा जाते थे। “हरिशंकर तिवारी” का राजनीति और बाहुबली का उत्तराधिकारी आज तक कोई नहीं हो सका है। हरिशंकर तिवारी यूं तो छोटे कद के थे लेकिन निगाहें बेहद पैनी थी। बड़े कद वालों को बैठा कर बात करते थे स्वभाव में ब्राह्मणों की लचक थी लेकिन अंदर से एक दम अकड़ थी जो ठान लेते थे वह करके मानते थे। उन्हें ठहाके लगाते हुए शायद ही किसी ने देखा होगा वह हल्के से मुस्कुराते और चश्मे के नीचे से झांकती हुई उनकी मुनीम वाली आंखें हर किसी को याद है। लेकिन अब ‘हरिशंकर तिवारी’ कहानियां और किस्सों में मिला करेंगे। क्योंकि 16 मई 2023 लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया।
राजनीति और अपराधीकरण:
‘हरिशंकर तिवारी’ के बारे में कहा जाता है कि वह पहले व्यक्ति थे जिसने राजनीति और अपराधीकरण का कॉकटेल बनाया था। कहां जाता है कि 50 साल पहले यानी 70 के दशक में जेपी आंदोलन की आग गोरखपुर यूनिवर्सिटी तक पहुंच चुकी थी। उस वक्त गोरखपुर में दो घुट हुआ करते थे। पहला ‘हरिशंकर तिवारी’ का और दूसरा ‘बलवंत सिंह’ का हरिशंकर तिवारी उस वक्त ब्राह्मण छात्रों के मसीहा बन चुके थे। उस दौरान बलवंत की ताकत उस वक्त दोगुनी हो गई जब ‘वीरेन प्रताप शाही’ उनके साथ हो गए उसके बाद बलवंत की शक्ति दोगुनी हो गई। कहा जाता है कि दोनों आपस में कभी- कभी भीड़ जाते थे या कोई कांड करना होता था तो पहले से इलाके को बता दिया जाता था और सूचना फैल जाती थी कि आज कहां गोली चलने वाली है। पूर्वांचल के राजनीति के जानकार बताते हैं की 1980 के दशक में छात्र राजनीति का ‘गोरखपुर यूनिवर्सिटी’ में वर्चस्व बड़ा और गोरखपुर में ब्राह्मण और ठाकुरों की लॉबी शुरू हो गई। वीरेंद्र शाही को मठ का समर्थन मिला हुआ था वही मठ जिसके आज मठाधीश “योगी आदित्यनाथ” है और इस वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी। वीरेंद्र शाही को मठ का समर्थन मिला तो हरिशंकर तिवारी ब्राह्मणों के नेता के तौर पर उभरे। यही से दोनों में गैंगवार शुरू होती है वीरेंद्र अपने महाराजगंज में तो वही हरिशंकर तिवारी गोरखपुर में बाकायदा दरबार लगाते थे। लोग अपनी समस्याओं को थाने, कचहरी ले जाने के बजाय इन हातो में गुजार दिया करते थे। यहां पर गुजारिश करने पर उन्हें न्याय मिल जाता था।
माफिया से माननीय:
1985 में हरिशंकर तिवारी जेल में बंद थे माफिया से माननीय बना था इसीलिए उन्होंने ‘चिल्लू पार‘ सीट से निर्दलीय नामांकन किया और प्रत्याशी बने। लेकिन नामांकन के बाद हरिशंकर तिवारी भले ही जेल में रहे हो लेकिन उनके लोगों ने उनका प्रचार किया। नतीजा आया तो हरिशंकर तिवारी ने कांग्रेस के ‘मारकंडे नंद’ को 21728 वोटों से हरा दिया था। देश में यह पहला मौका था और पहली यह तारीख थी जब कोई जेल के अंदर से रहते हुए चुनाव जीत गया था। यहां से हरिशंकर तिवारी की शक्ति और बढ़ गई और इलाके में दबदबा भी फैल गया। इसी दौरान हरिशंकर के अलावा लक्ष्मीपुर सीट से भी नौतनवा जिसे अब कहा जाता है। वहां से उनके प्रतिद्वंदी वीरेंद्र प्रताप शाही विधायक चुने गए थे। दो गुटों कि लड़ाई के बीच यूनिवर्सिटी का यह रास्ता बढ़कर अब विधानसभा पहुंच चुका था। इसी दौरान गोरखपुर से एक और लड़का निकला जिसका नाम था “श्री प्रकाश शुक्ला” श्री प्रकाश शुक्ला ने जब पहला मर्डर किया तो पुलिस उसे खोज रही थी तब श्री प्रकाश को संरक्षण देने का आरोप हरिशंकर तिवारी पर लगा बताते हैं कि हरिशंकर तिवारी ने श्री प्रकाश शुक्ला को बाकायदा बैंकॉक भेज दिया था और जब मामला ठंडा हुआ तो वापस बुला लिया। श्री प्रकाश को पैसा, पावर और सत्ता चाहिए थी इसीलिए उसने बिहार के सबसे बड़े बाहुबली ‘सूरजभान सिंह’ से हाथ मिला लिया। जब यह बात हरिशंकर तिवारी को पता चली तो उन्हें नागवार गुजरी लेकिन इसी दौरान श्री प्रकाश ने एक ऐसा काम कर दिखाया जो हरिशंकर तिवारी चाह कर भी यूं कहें कभी कर नहीं पाए श्री प्रकाश शुक्ला ने 1997 में महाराजगंज के बाहुबली विधायक ‘वीरेंद्र प्रताप शाही’ को लखनऊ के शहर के अंदर गोली मारकर हत्या कर दी।
वीरेंद्र प्रताप शाही वही जो की यूनिवर्सिटी में गोरखपुर की यूनिवर्सिटी में हरिशंकर तिवारी को टक्कर दिया करते थे। लोग यह बताते हैं कि यह हत्या हरिशंकर तिवारी के कहने पर की गई थी लोग यह भी बताते हैं की सबसे बड़ा “डॉन” बनने की चाहत में श्री प्रकाश ने ऐसा किया था। कभी गोरखपुर में पढ़ने के लिए किराए के मकान में रहने वाले हरिशंकर तिवारी के पास अब जटाशंकर मोहल्ले में हाता है या यूं कहें कि किले जैसा घर है जिसे लोग हाता के नाम से जानते हैं ‘हाता’ और ‘शक्ति सदन’ जी हां शक्ति सदन जिसमें विरेंद्र प्रताप शाही रहा करते थे उसे शक्ति सदन कहा जाता था। हाता और शक्ति सदन की लड़ाई सभी लोग जानते हैं हालांकि इसी दौरान मठ का समर्थन शक्ति सदन के तरफ था लेकिन यह सब अप्रत्यक्ष बातें थी। लेकिन कहा और चर्चाएं ऐसी ही है। इसी हाते से प्रदेश की कुछ दिनों बाद राजनीति तय होने लगी जेल से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले और जीतने वाले हरिशंकर तिवारी लगातार 22 साल तक विधायक बने रहें। साल 2007 तक वह गोरखपुर के ‘चिल्लू पार’ सीट से उनकी जीत का सिक्का चलता रहा। इस बीच अलग-अलग दलों की वो जरूरत बनते रहें और 1998 में कल्याण सिंह ने अपनी सरकार में उन्हें मंत्री बनाया तो बीजेपी के अगले मुख्यमंत्री बने रामप्रकाश गुप्त और राजनाथ सिंह सरकार में भी वह मंत्री बने इसके बाद मायावती सरकार में मंत्री बने और साल 2003 से 2007 तक मुलायम सिंह यादव की सरकार में भी मंत्री बनने का मौका मिला। 1980 के दशक में हरिशंकर तिवारी के खिलाफ गोरखपुर में 26 मुकदमे दर्ज हुए थे जिनमें हत्या करवाना, हत्या के लिए फिरौती, साजिश, अपहरण, रंगदारी, वसूली, सरकारी काम में बाधा डालना डालने जैसे तमाम आरोप लगे थे। लेकिन किसी भी आरोप में उन पर कभी दोष साबित नहीं हो पाया हालांकि 2007 में उनका वर्चस्व गिरा और पूर्व पत्रकार रहे ‘राजेश त्रिपाठी’ ने हरिशंकर तिवारी को पहले पहली बार मात दी।
योगी के उदय के बाद राजनीतिक अदावत हरिशंकर तिवारी और योगी के बीच भी खूब चली साल 2017 में जब उत्तर प्रदेश में योगी के नेतृत्व में सरकार बनी तो बाइक चोर की लोकेशन पुलिस बताती है हरिशंकर तिवारी के घर पर मिली थी। इसके बाद इतिहास में पहली बार या यूं कहें कि इससे पहले हाता के अंदर कभी पुलिस नहीं गई थी। 2017 में योगीराज में पहली बार पुलिस ने दबिश दी लेकिन उसके बाद तो गोरखपुर का यू मानिए दुबल आ गया पूरे माहौल में गर्माहट आ गई और हजारों लोग हरिशंकर तिवारी के समर्थन में सड़कों पर आ गए बाद में पुलिस को खुद पीछे हटना पड़ा और बाद में खुद धरना प्रदर्शन करने या यूं कहें कि मोर्चा लेने हरिशंकर तिवारी सड़क पर उतरे। लेकिन यह पहला मौका था और आखरी भी जब हरिशंकर तिवारी ने सड़क पर उतर कर बकायदा मठ के सामने सीधी टक्कर ली थी हालांकि इससे पहले उनकी राजनीतिक बगावत जरूर थी लेकिन इस घटना के बाद योगी ने अपनी ताकत जरूर दिखा दी थी। हालांकि अब तिवारी परिवार समाजवादी पार्टी के साथ जुड़ा हुआ है और अब उनके बेटे इस सियासत मैं आगे बढ़ा रहे हैं उनकी विरासत को लेकिन अब हरिशंकर तिवारी का नाम आप सिर्फ किससो में मिलेगा क्योंकि बीती रात 16 मई 2023 को उनकी मौत के बाद जिस तरह का हुजूम बड़ा है। जिस तरह का हुजूम उनके इलाके में देखा गया है जिस तरह ‘बड़हलगंज’ में जहां उनका अंतिम संस्कार हुआ वहां पर भीड़ देखकर पता चलता है कि तिवारी के मानने वाले उनके समर्थन और उनके चाहने वाले कितने थे।