अब आपके Gadgets भी होंगे Expire, क्या है नई Scrap Policy?

अब आपके Gadgets भी होंगे Expire, क्या है नई Scrap Policy?

राहुल पाठक

एक कहावत है ‘दादा ले और पोता बरते’ इस कहावत को हमारे देश के लोग बहुत ज्यादा सीरियसली लेते हैं। आपको अपने ही घर में दर्जनों आइटम ऐसे मिल जाएंगे जो खराब होने के बावजूद इसलिए नहीं फेके गए होंगे क्योंकि आपके पुरखों के इमोशन जुड़े होंगे। हमारे देश में लोग अपने पुरखों के समान को भी संभाल के रखते हैं आप में से कई लोगों के पास अभी भी कोई टीवी,  कोई रेडियो होगा जो आपके पिताजी ने खरीदा होगा और खराब होने के बावजूद उसे अपने संभाल के रखा होगा। हम भारतीय लोगों की मानसिकता है कि एक बार जो चीज हमने खरीदी उसे तब तक इस्तेमाल करते हैं जब तक कि वह मरम्मत करने लायक ना रहे।

सरकार की नई स्क्रैप पॉलिसी के तहत मोबाइल फोन, लैपटॉप, फ्रिज, टीवी, एसी समेत 134 इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स की एक्सपायरी डेट तय कर दी गई है। यानी एक निश्चित वक्त के बाद आपके घर में मौजूद इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स कबाड़ हो जाएंगे और आपको उन्हें स्क्रैप करना पड़ेगा।

वाहनों की तरह ही तय की गई है एक्सपायरी डेट:

सरकार की नई स्क्रैप पॉलिसी के तहत हर इलेक्ट्रॉनिक आइटम की एक्सपायरी डेट तय की गई है फिर चाहे वह घरेलू इस्तेमाल में आते हो या व्यावसायिक तौर पर उनका इस्तेमाल होता हो। यह बिल्कुल वैसे ही है जैसे भारत में वाहनों की एक्सपायरी डेट 15 साल होती है जिसके बाद वाहनों को सड़कों पर चलने की अनुमति नहीं मिलती है। उन्हें स्क्रैप करवाना होता है इस तरह इलेक्ट्रॉनिक सामान को भी एक निश्चित समय के बाद स्क्रैप करवाना होगा।

इलेक्ट्रॉनिक आइटमों की एक्सपायरी उम्र:

सबसे पहले आपके घर में समान तौर पर मिलने वाली इलेक्ट्रॉनिक आइटमों की एक्सपायरी डेट बताते हैं।

• फ्रिज 10 साल

• सीलिंग फैन 10 साल

• एयर कंडीशनर 10 साल

• माइक्रोवेव ओवन 10 साल

• वीडियो कैमरा 10 साल

• वाशिंग मशीन 9 साल

• स्मार्टफोन और लैपटॉप 5 साल

• टैबलेट फोन 5 साल

• स्कैनर 5 साल

• वीडियो गेम 2 साल

 

1 अप्रैल से लागू स्क्रैप पॉलिसी:

1 अप्रैल से लागू हो चुकी है नई स्क्रैप पॉलिसी इसके नियम भी जुलाई 2023 में सरकार ने एक नोटिफिकेशन के जरिए तय कर दिए हैं। जिनमें बताया गया है कि एक निश्चित अवधि के बाद इलेक्ट्रॉनिक उपकरण ई-वेस्ट माने जाएंगे और ई-वेस्ट को कलेक्ट करने के लिए देशभर में ही ई-वेस्ट कलेक्शन सेंटर खोले जाएंगे। इन सेंटरों पर इकट्ठा होने वाला ई-वेस्ट सीधे रीसायकल एजेंसी के पास जाएगा जो अपने ई- वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट में उसे स्क्रैप करेगी।

ई-कचरा क्या है? और हम इसका निपटान कैसे करते हैं:

E- Waste ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद है जो अवांछित है, काम नहीं कर रहे हैं और अपने “उपयोगी जीवन” के करीब या अंत में हैं। कंप्यूटर, टेलीविजन, वीसीआर, स्टीरियो और फैक्स मशीन रोजमर्रा के इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद है। प्रयुक्त और अवांछित इलेक्ट्रॉनिक्स का सर्वोत्तम तरीके से निपटारा कैसे किया जाए। इसकी चल रही चुनौती कोई नई-नही है और कम से कम 1970 के दशक से चली आ रही है लेकिन तब से बहुत कुछ बदल गया है।

ई कचरा परिभाषित:

ई-कचरा कोई भी विद्युत या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जिसे त्याग दिया गया है इनमें कम चलाओ और टूटी हुई वस्तुएं शामिल हैं। जिन्हें कूड़े में फेंक दिया जाता है या गुडविल जैसी चैरिटी पुनविक्रेता को दान कर दिया जाता है। अक्सर, यदि कोई वस्तु दुकान में बिना बिकी रह जाती है, तो उसे फेंक दिया जाएगा। ई-कचरा रसायनों के कारण विशेष रूप से खतरनाक है जो दफनाने पर स्वाभाविक रूप से अंदर की धातुओं से निकल जाते हैं।

दरअसल हमारे देश में खराब हो चुके 60 फ़ीसदी उपकरणों को खतरनाक तरीके से खफा दिया जाता है और बेहद कम लोग ही अपने खराब उपकरणों को रजिस्टर्ड कंपनियां के जरिए Recycle करवाते हैं। इसलिए सरकार ने ही ई-वेस्ट पॉलिसी में बदलाव करके सीधे कंपनियों को ही जिम्मेदारी सौंप दी है कि वह इलेक्ट्रॉनिक सामानों की एक्सपायरी डेट के बाद उनको कलेक्ट करें और खुद ही रीसायकल भी करें। ऐसे नियम बनाने वाला भारत कोई पहला देश नहीं है दुनिया के 140 देश में ऐसे ही वेस्ट मैनेजमेंट पॉलिसी लागू है।

यानी आपके घर का फ्रिज, एयर कंडीशनर, टीवी जो खराब हो चुके हैं वह सब ई-वेस्ट की कैटेगरी में आते हैं और यह ई-वेस्ट पूरी दुनिया के लिए उतना ही खतरनाक हो चुका है जितना कि ग्लोबल वार्मिंग। क्योंकि ई-वेस्ट ऐसा जहर है जो न सिर्फ पर्यावरण को बल्कि आपकी सेहत को भी नुकसान पहुंचता है और आपको पता भी नहीं चलता। संयुक्त राष्ट्र की लेटेस्ट ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटरिंग रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 में पूरी दुनिया में 5 करोड़ 36 लाख तन ई-वेस्ट पैदा हुआ।

सबसे ज्यादा ई-वेस्ट पैदा करने वाले देशों में नंबर वन पर चीन है जहां करीब 1 करोड़ टन  ई-वेस्ट हर साल पैदा होता है। दूसरे नंबर पर अमेरिका है जहां हर साल 69 लाख टन  ई-वेस्ट पैदा होता है। इस लिस्ट में तीसरे नंबर पर भारत है जहां हर साल 32 लाख टन ई-वेस्ट पैदा होता है। हालांकि वर्ष 2022 में “सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड” यानी CPCB ने जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें बताया गया है कि भारत में वर्ष 2017 में 7 लाख टन  ई-वेस्ट पैदा हुआ था। जो वर्ष 2018 में बढ़कर 750 हजार टन हुआ फिर वर्ष 2019 में 10 लाख टन हो गया वर्ष 2022 में भारत में 16 लाख टन ई-वेस्ट पैदा हुआ।

E-Waste सिर्फ भारत की समस्या नहीं है जो बढ़ती जा रही है बल्कि पूरे विश्व में ई-वेस्ट पैदा हो रहा है। लेकिन भारत में असली समस्या ई-वेस्ट का पैदा होना नहीं बल्कि ई-वेस्ट का मैनेजमेंट ना होना है। भारत में ई-वेस्ट का मैनेजमेंट ना होना कितनी बड़ी समस्या है इसे समझने के लिए आपको एक सर्वे रिपोर्ट के नतीजे बताते हैं। यह सर्वे “इंडियन सेल्यूलर एंड इलेक्ट्रॉनिक संगठन” ने किया है। जिसमें बताया गया है कि स्मार्टफोन, कंप्यूटर, लैपटॉप समेत करीब 20 करोड़ 60 लाख इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स लोगों के घरों में खराब पड़े हुए हैं।

सर्वे में शामिल 40 फ़ीसदी लोगों ने माना कि उनके पास मोबाइल्स और लैपटॉप सहित कम से कम ऐसे उपकरण है जो कई वर्षों से खराब पड़े हैं। सर्वे में यह भी बताया गया है कि भारत में लोग बेकार पड़े मोबाइल फोन और लैपटॉप को रिसाइकल करवाने में दिलचस्पी क्यों नहीं दिखाई, इसके मुख्य तौर पर तीन कारण है। पहला:- अच्छा एक्सचेंज ऑफर न मिलाना, दूसरा:- लोगों को डाटा लीक होने का डर लगता है, तीसरा:- लोगों को पता ही नहीं होता की इलेक्ट्रॉनिक सामान की रीसाइकलिंग कितनी जरूरी है।

नुकसान के बजाय हो सकता है फायदे का सौदा:

• ई-वेस्ट से भारत को जितना नुकसान होता है अगर इस ई-वेस्ट को वैज्ञानिक तरीके से रीसायकल कर लिया जाए तो भारत को उतना ही फायदा भी हो सकता है।

• ई-वेस्ट में कई मूल्यवान धातु है जैसे कि अल्मुनियम, कॉपर, सोना, चांदी होते हैं जिन्हें रिसाइकल करके निकल जाता है।

• इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों खासकर कंप्यूटर मोबाइल और लैपटॉप को बनाने में जिन रेयर अर्थ मेटल और मिनरल्स की जरूरत होती है वह भारत में बहुत कम पाए जाते हैं।

• ई-वेस्ट को रिसाइकल करके इन दुर्लभ खनिजों को हासिल करना धरती से उन्हें निकाल कर प्रोसेस करने से ज्यादा आसान और सस्ता भी होता है।

• भारत के इकोनामिक सर्वे 2019 की रिपोर्ट में बताया गया है कि ई-वेस्ट से हर साल 8000 करोड रुपए का सोना निकाला जा सकता है।

इससे आप खुद अंदाजा लगा लीजिए कि ई-वेस्ट में मौजूद दुर्लभ खनिजों की रीसायकल करना कितना जरूरी है। लेकिन यह तभी संभव है जब सरकार और लोग E-Waste management के महत्व को समझे। सरकार ने ई-वेस्ट से जुड़े जो नियम बनाए हैं और इलेक्ट्रॉनिक सामान की जो एक्सपायरी डेट फिक्स कर दी है वह इसी दिशा में उठाया गया एक पॉजिटिव कदम है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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