राहुल पाठक
बरहज बाजार और भटनी के बीच चलने वाली रेलगाड़ी का दुर्लभ नाम है बरहजिया।
“बरहजिया” का नाम सुना है आपने यू कोई जरूरी भी नहीं है रेलवे के टाइम टेबल के पन्ने पलटेंगे आपको उसमें इस नाम की कोई ट्रेन नहीं मिलेगी। अपने मुल्क में 13000 से ज्यादा रेल गाड़ियां रोज चलती हैं बरहजिया उन्हीं में से एक भी है ना मेल, ना एक्सप्रेस, बस “बरहजिया”।
बरहज से सलेमपुर और भटनी तक चलने वाली पांच डिब्बो वाली सवारी गाड़ी यानी पैसेंजर ट्रेन। यहां के लोगों के जुबान में बरहजिया है दुलार की जुबान में ‘बरहज’ कभी गोरखपुर का हिस्सा हुआ करता था सुदामा धर्मशाला की जर्जर दीवार पर लगा यह पत्थर अभी इसकी मुनादी करता है। जिसमें नीचे की तरफ बरहज बाजार जिला गोरखपुर संवत 1994 यानी 1937 ई दर्ज है। सरयू किनारे बसे इस कस्बे को देवरिया की तहसील का दर्जा 1946 में मिला। जब देवरिया को गोरखपुर से अलग करके नया जिला बनाया गया। किसी जमाने में बरहज गुङ, सिरा, खाट और अनाज की बड़ी मंडी हुआ करता था। कस्बे में पुराने तोर की तमाम बुलंद इमारतें या तो खानसारी की हुआ करती या फिर उनके मालिकों महावतों और व्यापारियों की हुआ करती थी। अंग्रेजी सरकार ने भटनी से बरहज के बीच 1876 में यह रेल लाइन बिछाई। अंग्रेजों के लिए यह माल की धुलाई का जरिया थी लेकिन बाद में आसपास के रहने वाले हजारों हजार लोगों के लिए यह रेलगाड़ी लाइफ लाइन का काम करती है।
ताट स्टेशन मिलने वाले हैं:-
बरहज के बाद गुलाब राय,सिसई,सतरांव,देवरहा बाबा हॉट,सलेमपुर,पीकोल और भटनी। 20 किलोमीटर की रफ्तार से चलने वाली हमारी ट्रेन 30 किलोमीटर का सफर डेढ़ घंटे में पूरा करती है। पूरे रास्ते तमाम दिलचस्प वाकया है पर इसमें से ना भूलने वाला वाक्य देवरहा बाबा हार्ट और सतरांव रेलवे स्टेशन के बीच ‘चक्रा‘ डाले का है डाला यानी की रेलवे क्रॉसिंग चक्रा ढले पर रेलवे का कोई मुलाजिम नहीं होता और प्वाइंट मैन इसी रेल में सफर करता है। रेलवे क्रॉसिंग से पहले प्वाइंट मैन ट्रेन ड्राइवर को लाल झंडी दिखाकर रुकने का इशारा करता है और ट्रेन रुक जाती है। ट्रेन से उतरकर क्रासिंग तक आने और उसके बाद दोनों तरफ के फाटक बंद करने के बाद ‘को ड्राइवर‘ को हरी झंडी दिखता है और ट्रेन रवाना होती है और जैसे ही आखिरी डिब्बा फाटक पार होता है वह फिर लाल झंडी दिखाकर ट्रेन को रोकने का इशारा करता है। अब वह दोनों तरफ के फाटक खोलने के बाद हरी झंडी दिखाते हुए ट्रेन में सवार होता है और हमारा आगे का सफर शुरू होता है और पूरी इस कवायत में कम से कम 10 मिनट का वक्त लगता ही है। यह 10 मिनट दरअसल उन मुसाफिरों के लिए बड़े काम का होता है जो पटरी के आसपास अपने समान के साथ ट्रेन के आने का इंतजार कर रहे होते हैं रुकी हुई ट्रेन में यह मुसाफिर आराम से सवार हो जाते हैं इतना ही नहीं आसपास के जाने वाले मुसाफिर यहां पर उतरते भी हैं।
यह थी हमारी छोटी सी बरहजिया के ऊपर एक जानकारी।