क्यों कहते हैं ‘बागी बलिया’ History of Ballia बलिया जिले की संपूर्ण जानकारी।।

क्यों कहते हैं ‘बागी बलिया’ History of Ballia बलिया जिले की संपूर्ण जानकारी।।

 

राहुल पाठक

बलिया के धरती को बागियों की धरती क्यों कहा जाता है। इस जिले की तासीर इतनी गर्म क्यों है आखिर वह क्या बात है जिसकी वजह से बलिया से पहले ‘बागी’ का विशेषण लगता है।

‘बागी’ बलिया  का जिक्र करने से पहले यह समझना जरूरी है कि भारत के नक्शे पर यह भूखंड है कहां पर। राजनीति और प्रशासनिक तौर पर बलिया उत्तर प्रदेश का हिस्सा है पूर्वी इलाके में बिहार के सीमा पर स्थित है। इस जिले की दो प्रमुख नदियां गंगा और घाघरा इसे सिंचित करती हैं। यू कह तो यह इलाका खेती-बाड़ी के लिए मशहूर रहा है। इसके उलट या जिला गंगा नदी की तरह शालीन तू घाघरा की प्रलयकरी लहरों की तरह सत्ता व्यवस्था के खिलाफ हिलोरे भी मारता है। बलिया का नाम राजा ‘बलि’ के नाम से पड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाप्रतापी राजा ‘बलि’ ने बलिया को अपनी वैभवशाली राजधानी बनाया था। वाल्मीकि, अत्री, वशिष्ठ, भृगु और अनेक ऋषि-मुनियों, साधु, संत, महात्माओं की ताप भूमि होने का वैदिक काल से सिमटे हुए हैं।
बलिया प्राचीन काल में कौशल साम्राज्य का अभिन्न अंग था। भारत वंश अपनी विभिन्नताओं और गौरव के साथ इतिहास भी समेटे हुए हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से जनपद बलिया का अतीत अत्यंत गौरवशाली और महिमामंडित रहा है। पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक तथा औद्योगिक दृष्टि से बलिया का अपना विशिष्ट स्थान है। हिंदू, मुस्लिम सांप्रदायिक सद्भाव आध्यात्मिक, वैदिक, पौराणिक शिक्षा, संस्कृति, संगीत कला और सुंदर भवन धार्मिक मंदिर ऐतिहासिक दुर्ग मस्जिद। गौरवशाली सांस्कृतिक प्राचीन कला की धरोहर को आदिकाल से अब तक अपने अंदर समेटे हुए बलिया का विशेष इतिहास रहा है।

1857 और ‘मंगल पांडे’:

वैसे तो ना जाने बलिया के धरती से कितने रण माकरो ने देश के लिए दकियानूसी व्यवस्थाओं के खिलाफ आवाज उठाई। लेकिन 3 नाम का बलिया के धरती से खास जुड़ाव रहा है ऋषि भृगु की धरती पर मंगल पांडे ने 1857 में अंग्रेजो के खिलाफ जो महिम छेड़ी वह नजीर बन गई। अंग्रेजों को अंदाजा नहीं था कि भारत की सत्ता जो उनके हाथ आई है उसे इस तरह से चुनौती भी दी जा सकती है। मंगल पांडे ने जब ब्रिटिश फौज के खिलाफ विद्रोह किया तो खास मायनों में अहम था। उन्होंने एक तरफ अंग्रेजी दासता के खिलाफ ना सिर्फ अगुआ बनके लड़ाई की बल्कि सांप्रदायिक सद्भाव के भी अगुआ बने।  बात तो सच है कि 1857 का आंदोलन कामयाब नहीं हुआ लेकिन भारतीयों के मन में इस आंदोलन ने यह भरोसा जरुर जगा दिया की कुछ भी नामुमकिन नहीं।

1942 और ‘चित्तू पांडे’ Chittu Pandey “TIGER OF BALLIA”

कालचक्र का पहिया घूमता रहा और 1942 के कालखंड ने जब ‘महात्मा गांधी’ ने “करो या मरो” के आंदोलन के साथ भारत छोड़ो का नारा बुलंद किया तो एक बार फिर बलिया चर्चा में आ गया चिंटू पांडे की अगुवाई में ब्रिटिश सरकार की इमारतों पर स्वाधीनता झंडा फहरा कर यह संदेश दे दिया गया की आजादी से कम अब कुछ भी स्वीकार नहीं है। बलिया के साथ-साथ तमलुक और सतारा मैं भी स्वाधीन सरकार बनाई गई थी। चिंटू पांडे ने न सिर्फ यूनियन जैक को उतारा था बल्कि शासन व्यवस्था का खाका भी खींचा था।

युवा तुर्क ‘चंद्रशेखर’:

1947 में देश आजाद हो चुका था अब लाल किले पर भारतीय तिरंगा शान से लहरा रहा था। भारत की सत्ता अब भारत के लोगों के हाथ में थी। कांग्रेस पार्टी और शासन व्यवस्था के केंद्र में थी उसी समय एक और शख्स राजनीति के मैदान में दस्तक दे रहा था। उस शख्स का नाम था ‘चंद्रशेखर’ चंद्रशेखर भी कांग्रेस की विचारधारा से प्रेरित थे। लेकिन इंदिरा गांधी की कार्यप्रणाली से नाखुश और पार्टी लाइन से इतर जाकर अपने नजरिया को गढ़ा इसके लिए उन्हें युवा तुर्क कहा गया। चंद्रशेखर के लिए सरकार में शामिल होने के कई मौके आए लेकिन उन्होंने तय कर रखा था कि सत्ता की राजनीति उनके लिए सिर्फ एक पद बना है। उन्होंने तय कर रखा था कि सत्ता की राजनीति में उनके लिए सिर्फ एक ही पद बना है वह है ‘प्रधानमंत्री’ का पद। 1990 के दशक में हालात तेजी से बदले देश की शीर्ष कुर्सी पर विराजमान हुए चंद्रशेखर।।

बलिया में रुचि के स्थान क्या-क्या है:

सुरहा ताल पर जाकर अपना दिन शुरू करना चाहिए। सुरहा ताल हमेशा पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों को देखने के लिए जाना जाता है। यह अभ्यारण बलिया से 70 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां भिर्गु मंदिर भी देखने लायक स्थान है बलिया में भृगु मंदिर और भृगु आश्रम है। इस मंदिर का अपना महत्व है और बलिया के स्थानीय लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। आप यहां के ‘दादरी’ गांव को भी देख सकते हैं आप यहां पर भोजपुरी खाने का भी आनंद ले सकते हैं।

बलिया कैसे पहुंचे:

बलिया, वाराणसी, पटना और गोरखपुर जैसे शहरों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है आप इन मार्ग में से किसी भी मार्ग से बलिया तक पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग द्वारा:
बलिया स्टेशन बलिया के प्रमुख रेलवे स्टेशन में से एक है। हालांकि यहां अन्य रेलवे स्टेशन भी है जिनमें बेल्थरा रोड, रसड़ा, और सुरेमनपुर भी शामिल है। बलिया का निकटतम हवाई अड्डा पटना और वाराणसी है पटना हवाई अड्डे और वाराणसी हवाई अड्डे से बलिया की दूरी 140 किलोमीटर है। बलिया पर दी गई हमारी यह जानकारी आपको कैसी लगी।।

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