कहानी कबाब की:

कहानी कबाब की:

राहुल पाठक

आप लखनऊ जाएं और टुंडे कबाबी के गलौटी कबाब ना खाएं… तो फिर आप क्या ही लखनऊ गए, जी हां। लेकिन कबाब खाते समय कभी आपके मन में यह सवाल आया है कि आखिर पहली बार कबाब बना कैसे होगा और कहां से बनाया गया? लेकिन क्या आपको पता है कि लखनऊ के अलावा और भी बहुत सी जगह है भारत में जहां के कबाब मशहूर है दूर-दूर से लोग कबाब का लुक उठाने इन मसूर जगह पर पहुंचते हैं। इब्नबतूता के अनुसार कबाब भारत में मुगल शासन से पहले भारतीय रसोई में मौजूद थे. इस काल में शाही रसोई की कमान खानसामा (पुरुष रसोईया) के हाथ में होती थी जिसमें तुर्की, ईरान और अफगानी खानसामा का बोलबाला था।

कबाब का इतिहास:

भारत में 1000 साल से ज्यादा पुराना है कब आपका इतिहास आज मौजूद है से करो वैरायटी। कबाब का उल्लेख पहली बार 9वी शताब्दी ईस्वी के ग्रंथों में किया गया था, “कबाब” शब्द फारस से निकला है और संभवतः कबाब की उत्पत्ति इससे भी पहले हुई थी ऐसा माना जाता है कि इस व्यंजन की उत्पत्ति फारसी साम्राज्य में हुई थी, जहां यह लोकप्रिय स्ट्रीट फूड था जिसका अर्थ है “तलना” या “भूनना”। ऐसा माना जाता है कि कबाब की उत्पत्ति मध्ययुगीन फारसी शहर समरकंद में हुई थी, जहां मूल रूप से मिलने के मांस से कबाब बनाए जाते थे।

18वीं सदी के अंत में, कबाब ने भारत में अपनी जगह बनाई यहां वे जल्द ही एक लोकप्रिय स्ट्रीट फूड बन गए। इसके बाद की शताब्दियों में कबाब एक लोकप्रिय व्यंजन रहे क्योंकि उन्हें खुली आग पर पकाया जा सकता था और इसके लिए किसी विशेष उपकरण या सामग्री की जरूरत नहीं होती थी।

चंगेज खान से कबाब का कनेक्शन?

12वीं शताब्दी में मंगोल साम्राज्य का शासक चंगेज खान (1206-1227) था। विश्व के इतिहास में चंगेज खान ने बहुत सी खूनी जंग लड़ी है वह अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए अधिकतर जंगी सफर में रहता था। उसकी मंगोल सेना इतिहास के सबसे क्रूर सिपाहियों में से एक थी, चंगेज खान उनके खान-पान का बड़ा ध्यान रखता था कहा जाता है कि चंगेज खान की सेना हाथ में तीर कमान और काठी में कबाब लेकर चलती थी। जिसके बूते चंगेज खान ने कई सभ्यताओं को तहस-नहस कर दिया।

इतिहास के पन्नों को यदि पलटा जाए तो कई साहित्यकारों का मानना है की, मंगोल सैनिक जब जंग के लिए जाते, तो उनकी पत्नियां सफर के लिए उन्हें मांस का टुकड़ा, प्याज, आटे- चावल के साथ कुछ सुखे पिसे हुए मसाले की पोटली देती थी। जिसे सैनिक भूख लगने पर अपनी तलवारों पर मांस के टुकड़े को लपेटकर आग में भूनते थे, उसके ऊपर से सुखे पीसे मसाले को डालकर खाते थे। तलवारों की नोक पर मांस के टुकड़े को भूनकर खाने का चलन तुर्क सभ्यताओं ने भी बाद में अपनाया। यही से भारत में पसंद की जाने वाली सीख कबाब का जन्म हुआ।

भारत पहुंचा कबाब:

मुगलों के भारत आने से पहले से ही कबाब भारतीय रसोई में पहुंच चुका था। अफगान लुटेरे और आक्रमणकारी कबाब को भारत लेकर आए, मुगलों के आने से पहले कबाब का मतलब था मीट का मरिनेशन जिसे खुले ओवन में पकाया जाता था। लेकिन मुगलों ने इसे और स्वादिष्ट व्यंजन के रूप में विकसित किया मुगलों के कबाब नरम और रसीले थे जिसे मसाले और सुख मेंवो से बनाया जाता था।

नवाबों ने भी उठाया कबाब का लुफ्त:

अवध के नवाब लजीज खाने के बड़े शौकीन थे जानकार बताते हैं कि एक उम्र के बाद लखनऊ के “नवाब वाजिद अली शाह” के दांत खराब हो गए थे वह सख्त खाना नहीं खा पाते थे लेकिन मांस खाने के बड़े शौकीन थे उनके लिए मांस के टुकड़े को पपीते के साथ अच्छी तरह पीसकर उसमें मसाले मिलाकर कबाब तैयार किया गया जो मुंह में रखते ही घुल जाते थे बाद में इसे गलौटी कबाब के नाम से जाना गया।

आज भी टुंडे का कबाब लखनऊ की पहचान बना हुआ है जो 160 किस्म के मसाले से तैयार किया जाता है। इसके नाम के पीछे भी दिलचस्प किस्सा है टुंडे कबाब के मालिक रईस अहमद के पिता हाजी मुराद अली भोपाल के नवाबों के प्रमुख खांनसामे थे। वह पतंग उड़ाने के बड़े शौकीन थे एक बार पतंग उड़ाते समय छत से गिरकर उनका हाथ टूट गया उनका केवल एक हाथ था और इसलिए उन्हें लोग टुंडे कहते थे इसी नाम पर इस जगह का नाम टुंडे कबाबी पड़ गया।

इनमें से कुछ कबाबों के बारे में आज हम आपको बता रहे हैं

 

टुंडे कबाबी के गलौटी कबाब:

दरअसल नवाब वाजिद अली शाह के दांत नहीं थे इसलिए वह कुछ ऐसा कबाब खाना चाहते थे जो नरम हो, हाजी मुराद ने उन्हें ऐसा कबाब बना कर दिया. उन्होंने कबाब में 160 मसाले का इस्तेमाल किया था साथ ही कबाब इतना नरम और कोमल था कि इसका नाम गलौटी कबाब पड़ गया। मुलायम, रसीली, मुंह में घुल जाने वाली पैटी जैसे लखनऊ के कबाबों को इसका नाम निर्माता हाजी मुराद अली के नाम पर मिला है। उनका केवल एक हाथ था और इसलिए लोग उन्हें टुंडे कहते थे इसी नाम पर इस जगह का नाम टुंडे कबाबी पड़ गया।

रेशमी कबाब:

इसमें निश्चित रूप से बहुत अधिक मुगल प्रभाव है जिसे खाना पकाने की प्रक्रिया में देखा जा सकता है। इसमें बहुत ज्यादा क्रीम और काजू का उपयोग किया जाता है यह बोनलेस चिकन से बनता है इस मास के टुकड़ों को क्रीम, दही, काजू के पेस्ट मसाले में मैरिनेट करके पकाया जाता है और फिर तंदूर में ग्रिल किया जाता है इसकी ऊपरी परतदार और अंदर से मुलायम होती है।

शामी कबाब:

भारत-पाकिस्तान और बांग्लादेश में एक लोकप्रिय कबाब यह मांस छोले और अंडों के साथ बनाया जाता है। नाश्ते के रूप में खाया जाने वाला कबाब मुगल काल से चला आ रहा है जब सीरियाई रसोइयों ने सम्राट की रसोई में इसका आविष्कार किया था। ‘बिल-अल-शाम’ सीरिया का पूरा नाम था।

काकोरी कबाब:

काकोरी नाक केवल 1925 के प्रसिद्ध काकोरी षड्यंत्र के लिए बल्कि स्वादिष्ट कबाब के लिए भी जाना जाता है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटा काकोरी एक छोटा कस्बा है, और इस कस्बे के नाम पर ही यहां का प्रसिद्ध कबाब काकोरी कबाब अवधी व्यंजनों के सबसे प्रसिद्ध व्यंजनों में से एक है और अपनी नरम बनावट और सुगंध के लिए जान जाता है इसे सीखों में भून जाता है और भारतीय रोटी के साथ परोसा जाता है।

बिहारी कबाब:

बिहारी कबाब का स्वाद देहाती होता है, इनमें मसाले ज्यादा नहीं होते हैं बल्कि यह खुली आंच में भुने हुए मांस के टुकड़े होते हैं। मसालो का उपयोग सिर्फ मांस को मैरिनेट करने के लिए और उसे नरम बनाने के लिए किया जाता है। कहते हैं कि इसकी उत्पत्ति अब और तुर्की आक्रमणकारियों के शिविरों में हुई थी जो अपनी तलवार के धार पर मांस के टुकड़े तिरछा करके भूनते थे।

 

 

 

 

 

 

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