लखनऊ का इतिहास:

लखनऊ का इतिहास:

राहुल पाठक

इतिहास में उल्लेख मिलता है कि लखनऊ के स्वरूप की स्थापना नवाब आसफउदौला ने 1775 में की थी। उसे वक्त लखनऊ का नाम अवध हुआ करता था और यह शासको की राजधानी हुआ करता था। राजधानी के दौरान यह काफी फेमस हुआ और 1850 में लखनऊ के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह थे। इसके बाद, अवध पर ब्रिटिश साम्राज्य का शासन शुरू हो गया।

विवरण:
लखनऊ शहर में लखनऊ जिले और लखनऊ मंडल के प्रशासनिक मुख्यालय भी स्थित है। लखनऊ शहर अपनी खास नजाकत और तहजीब वाली बहुसांस्कृतिक खूबी, दशहरी आम के बागो तथा चिकन की कढ़ाई के काम के लिए जाना जाता है। 2006 में इसकी जनसंख्या 2541101 तथा साक्षरता दर 68.63 प्रतिशत थी। भारत सरकार की 2001 की जनगणना, सामाजिक आर्थिक सूचकांक और बुनियादी सुविधा सूचकांक संबंधित आंकड़ों के अनुसार, लखनऊ जिला अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाला जिला है। कानपुर के बाद यह शहर उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है शहर के बीच से गोमती नदी बहती है जो लखनऊ की संस्कृति का हिस्सा है।

लखनऊ उस क्षेत्र में स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा ह। यहां के शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। लखनऊ को “नवाबों के शहर” के रूप में भी जाना जाता है। इस पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है। आज लखनऊ एक जीवंत शहर है जिसमें एक आर्थिक विकास दिखता है और यह भारत के तेजी से बढ़ रहे गैर-महानगरों के शीर्ष 15 में से एक है। यहां हिंदी और उर्दू साहित्य के केंद्रों में से एक है यह अधिकांश लोग हिंदी बोलते हैं। यहां की हिंदी में लखनवी अंदाज है जो विश्व प्रसिद्ध है इसके अलावा यहां उर्दू और अंग्रेजी भी बोली जाती है।

आसफ़ुद्दौला का योगदान:
नवाब आसफ़ुद्दौला (1795-1797 ई) के समय में राजधानी फैसलाबाद से लखनऊ आ गई। आसफ़ुद्दौला ने लखनऊ में बड़ा इमामबाड़ा, विशाल रूमी दरवाजा और आसफी मस्जिद नामक इमारतें बनवाई। इनमें से अधिकांश इमारतें अकाल पीड़ितों को मजदूरी देने के लिए बनवाई गई थी। आसफ़ुद्दौला को लखनऊ निवासी “जिसे ना दे मौला, उसे दे आसफ़ुद्दौला” कहकर याद करते हैं। आसफ़ुद्दौला के जमाने में ही अन्य प्रसिद्ध भवन, बाजार तथा दरवाजे बने थे। जिनमें प्रमुख है- ‘दौलतखाना’, ‘रेजिडेंसी’, ‘बीबियापुर कोठी’, ‘चौक बाजार’ आदि।

आसफ़ुद्दौला के उत्तराधिकारी:
• आसफ़ुद्दौला के उत्तराधिकारी सआदत अली खाँ (1798-1814 ई) के शासनकाल में ‘दिलकुशमहल’ बेली गारद दरवाजा’ और ‘लाल बारादरी’ का निर्माण हुआ
• गाजीउद्दीन हैदर (1814-1827 ई) में ‘मोतीमहल’, ‘मुबारक मंजिल सआदतअली’, और ‘खुर्शीदजादी’ के मकबरे आदि बनवाएं।
• नसीरुद्दीन हैदर के जमाने में प्रसिद्ध ‘छतरमंजिल’ और ‘शाहनजफ’ आदि बने।
• मोहम्मद अलीशाह (1837-1842 ई) में ‘हुसैनाबाद का इमामबाड़ा’, ‘बड़ी जामा मस्जिद’ और ‘हुसैनाबाद की बारादी’ बनवायी।
• वाजिद अली शाह (1822-1887 ई) में लखनऊ के विशाल एवं भव्य ‘कैसरबाग’ का निर्माण करवाया। यह कलाप्रिया एवं विलासी नवाब यहां कई-कई दिन चलने वाले अपने संगीत, नाटकों का, जिनमें ‘इंद्रसभा नाटक’ प्रमुख था, अभिनय करवाया करता था।

लखनऊ भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध शहरों में से एक है। देश के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की यह राजधानी है। किसी समय में यह ‘नवाबों के शहर’ के नाम से विख्यात था। आज लखनऊ को ‘बाग़ों का शहर’ कहा जाता है। यहाँ राजकीय संग्रहालय भी है, जिसकी स्थापना 1863 ई. में की गई थी। 500 वर्ष पुरानी मुस्लिम सन्त शाह मीना की क़ब्र भी यहीं पर है। गोमती नदी के तट पर स्थित लखनऊ ‘भारतीय इतिहास’ में घटित कई महत्त्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है।

लखनऊ का इतिहास:–

प्राचीन समय में लखनऊकोसल महाजनपद के विशाल साम्राज्य का एक अंग था जिसकी राजधानीअयोध्या थी। एक लम्बे अरसे तक यहां सूर्य वंशीय राजाओं का शासन रहा। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पिता महाराज दशरथ 56वें सूर्यवंशी शासक थे। इस वंश के अन्तिम एवं 113वें शासक महाराज सुमित्र हुए।छठी शताब्दी में हिन्दुस्तान 16 महाजनपदों में बँटा था। इन जनपदों में कोसल जनपद काफी सशक्त और समृद्धशाली माना जाता था। सरयू नदी इस जनपद को दो भागों में विभक्त करती थी। उत्तरी कोसल और दक्षिणी कोसल। ज्यों-ज्यों मगध राज्य का विस्तार होता गया त्यों-त्यों कोसल राज्य का पतन होता गया। भरवंशीय शासकों ने भी अवध के भू-भाग पर शासन किया। इसके प्रमाण भी खुदाई के दौरान मिले हैं।सातवीं शताब्दी में महाराजा हर्षवर्धन के विशाल साम्राज्य में भी अवध का एक बड़ा भाग शामिल था। नवीं और दसवीं शताब्दी में गुजर तथा प्रतिहार वंशीय शासकों ने यहां शासन किया। ग्यारहवीं शताब्दी से मुगलों का अवध में प्रवेश होना शुरू हो गया। 1031 ई० और 1033 ई० में महमूद गजनवी तथा तुर्की सुलतान के भतीजे सेय्यद सालार मसऊद ‘गाज़ी’ ने अवध पर आक्रमण किया।

मध्यकालीन काल में लखनऊ:
1350 के बाद से, लखनऊ और अवध क्षेत्र के कुछ हिस्सों पर दिल्ली सल्तनत, शर्की सल्तनत, मुगल साम्राज्य, अवध के नवाब, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश राज का शासन था।1394 से 1478 तक अवध जौनपुर की शर्की सल्तनत का हिस्सा था। 1555 के आसपास, सम्राट हुमायूं ने इसे मुगल साम्राज्य का हिस्सा बना दिया। सम्राट जहांगीर (1569-1627) ने अवध में एक पसंदीदा रईस शेख अब्दुल रहीम को एक संपत्ति दी, जिसने बाद में इस संपत्ति पर मच्छी भवन का निर्माण किया। बाद में, शेखजादास, उनके वंशज, इस क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए सत्ता की सीट बन गए।

भूगोल:
विशाल गांगेय मैदान के हृदय क्षेत्र में स्थित लखनऊ शहर बहुत से ग्रामीण कस्बों एवं गांवों से घिरा हुआ है, जैसे अमराइयों का शहर मलिहाबाद, ऐतिहासिक काकोरी, मोहनलालगंज, गोसांईगंज, चिन्हट और इटौंजा। इस शहर के पूर्वी ओर बाराबंकी जिला है, तो पश्चिमी ओर उन्नाव जिला एवं दक्षिणी ओर रायबरेली जिला है। इसके उत्तरी ओर सीतापुर एवं हरदोई जिले हैं। गोमती नदी, मुख्य भौगोलिक भाग, शहर के बीचों बीच से निकलती है और लखनऊ को ट्रांस-गोमती एवं सिस-गोमती क्षेत्रों में विभाजित करती है। लखनऊ शहर भूकम्प क्षेत्र तृतीय स्तर में आता है।

जलवायु:

लखनऊ में गर्म अर्ध-उष्णकटिबन्धीय जलवायु है। यहां ठंडे शुष्क शीतकाल दिसम्बर-फरवरी तक एवं शुष्क गर्म ग्रीष्मकाल अप्रैल-जून तक रहते हैं। मध्य जून से मध्य सितंबर तक वर्षा ऋतु रहती है, जिसमें औसत वर्षा 1010 मि.मी. (40 इंच) अधिकांशतः दक्षिण-पश्चिमी मानसून हवाओं से होती है।लखनऊ में मानसून की उमड़ती घुमड़ती घटाएं
शीतकाल का अधिकतम तापमान 21°से. एवं न्यूनतम तापमान 3-4°से. रहता है। दिसम्बर के अंत से जनवरी अंत तक कोहरा भी रहता है। ग्रीष्म ऋतु गर्म रहती है, जिसमें तापमान 40-45°से. तक जाता है और औसत उच्च तापमान 30°से. तक रहता है।

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